पटना (KIU डेस्क)| क्या आप तनावग्रस्त (Stressful) और ज्यादा निष्क्रिय अर्थात आरामतलब जिंदगी (sedentary lifestyle) जीते हैं तथा साथ में आपका खान-पान भी ठीक नहीं है ? तो आपको इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (Irritable Bowel Syndrome) का खतरा हो सकता है. आइए जानते हैं कि ये कारण आज किस तरह से युवा वयस्कों को प्रभावित कर रहे हैं और उन्हें गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल यानि पेट व आंत से संबंधित बीमारियों के उच्च जोखिम वाले श्रेणी में डालते हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, जिन युवा वयस्कों के जीवन में तनाव बढ़ गया है और जो बिना किसी व्यायाम के एक गतिहीन अर्थात बहुत आराम वाली जीवन शैली जीते हैं और खराब आहार भी खाते हैं, उनमें चिड़चिड़ा आंत्र सिंड्रोम (IBS) विकसित होने का खतरा अधिक हो सकता है.
आईबीएस एक सामान्य विकार है जो पेट और आंतों को प्रभावित करता है जिससे पेट में ऐंठन, दस्त, कब्ज, सूजन और गैस होती है.
इसका कोई विशिष्ट कारण नहीं
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि हालाँकि IBS का कोई विशिष्ट कारण नहीं है, लेकिन यह अत्यधिक संवेदनशील बृहदान्त्र (colon) या प्रतिरक्षा (immune) प्रणाली से संबंधित हो सकता है. फ़रीदाबाद स्थित मारेंगो एशिया हॉस्पिटल (Marengo Asia Hospitals, Faridabad) में गैस्ट्रोएंटरोलॉजी के निदेशक और एचओडी डॉ बीर सिंह सहरावत ने बताया कि आईबीएस से युवाओं को अधिक जोखिम होता है.
खराब खाने की आदत है खराब
डॉ सहरावत के अनुसार, युवा फास्ट फूड का सेवन करते हैं जो मसालेदार, तैलीय होता है और इसमें अतिरिक्त शर्करा (added sugars), नमक, वसा और कृत्रिम तत्व भी होते हैं; और वातित पेय (aerated drinks) का सेवन युवा पीढ़ी में अधिक है. इन खाद्य पदार्थों में न केवल पोषण की कमी होती है, बल्कि ये आंत के बैक्टीरिया के संतुलन को भी प्रभावित कर सकते हैं, जिससे आईबीएस के लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं.
इसके अलावा, अत्यधिक मानसिक तनाव हार्मोनल गड़बड़ी (hormonal disturbances) पैदा कर सकता है जिसका असर पाचन पर पड़ सकता है. चिंता पूरे शरीर में रक्त और ऑक्सीजन के नियमन को भी बदल देती है जो पेट को प्रभावित करती है जिससे दस्त, कब्ज, गैस या असुविधा होती है.
गाजियाबाद स्थित मणिपाल अस्पताल (Manipal Hospital, Ghaziabad) के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी कंसल्टेंट मनीष काक ने बताया कि इन कारणों से “भारत में आईबीएस के मामले बढ़ रहे हैं.”
उन्होंने बताया कि हालांकि आईबीएस पाचन तंत्र को नुकसान नहीं पहुंचाता है और न ही यह कोलन कैंसर के खतरे को बढ़ाता है, लेकिन यह एक लंबे समय तक चलने वाली समस्या हो सकती है जो आपके दैनिक दिनचर्या को बदल देती है.
ऐसे करें कंट्रोल
आईबीएस के खतरे को कम करने के लिए व्यक्ति को फाइबर युक्त आहार अपनाना चाहिए, शराब के सेवन से बचना चाहिए, नियमित व्यायाम करना चाहिए और योग और ध्यान के माध्यम से तनाव का प्रबंधन (manage stress through yoga and meditation) करना चाहिए.
हालांकि डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि आईबीएस के इन लक्षणों को नजरअंदाज न करें जैसे कि सूजन, कब्ज, दस्त, मल त्याग करते समय अत्यधिक तनाव, बार-बार डकार आना, पेट में दर्द या ऐंठन, खासकर मल त्याग के दौरान.
डॉ बीर के अनुसार, “इन लक्षणों का अनुभव होने पर, एक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट से परामर्श लें. यदि इलाज नहीं किया जाता है, तो आईबीएस कोलन, या बड़ी आंत को प्रभावित कर सकता है, जो पाचन तंत्र का हिस्सा है जो मल को संग्रहित करता है.”